अलंकार क्या है ?
> अलंकार शब्द 'अलम्' धातु से बना है जिसका अर्थ है अलंकार के प्रकार 'आभूषण' । जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य-अलंकारों से काव्य की।
संस्कृत के अलंकार संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य दण्डी के शब्दों में 'काव्य शोभाकरान् धर्मान अलंकारान् प्रचक्षते'-काव्य के शोभाकारक धर्म (गुण) अलंकार कहलाते हैं।
> हिन्दी के कवि केशवदास एक अलंकारवादी कवि हैं।
अलंकार के तीन प्रकार हैं- .
(A) शब्दालंकार - शब्द पर आश्रित अलंकार
(B) अर्थालंकार - अर्थ पर आश्रित अलंकार
(C) आधुनिक/पाश्चात्य – आधुनिक काल में पाश्चात्य साहित्य अलंकार से आए अलंकार
अलंकार |
लक्षण/पहचान चिह्न |
उदाहरण/ टिप्पणी |
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1. | अनुप्रास* | व्यंजन वर्णों की आवृत्ति | बँदउँ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा। (तुलसी) पद स र की आवृत्ति |
(i) | छेकानुप्रास | अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपतः व क्रमतः आवृत्ति |
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ।। (तुलसी) पद पदुम में पद एवं सुरुचि सरस में सर – स्वरूप की आवृत्ति पद में प के बाद द, पदुम में प के बाद द - क्रम की आवृत्ति सुरुचि में स के बाद र, सरस में स के बाद र - क्रम की आवृत्ति |
(ii) | वृत्त्यनुप्रास | अनेक व्यंजनों की अनेक बार स्वरूपतः व क्रमतः आवृत्ति |
कलावती केलिवती कलिन्दजा कल की 2 बार आवृत्ति- स्वरूपतः आवृत्ति क ल की 2 बार आवृत्ति- क्रमतः आवृत्ति |
(iii) | लाटानुप्रास | तात्पर्य मात्र के भेद से शब्द व अर्थ दोनों की पुनरुक्ति |
लड़का तो लड़का ही है - शब्द की पुनरुक्ति सामान्य लड़का रूप बुद्धि शीलादि गुण संपन्न लड़का - अर्थ की पुनरुक्ति |
2. | यमक* | शब्दों की आवृत्ति (जहाँ एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग-अलग हों) |
कनक'-कनक' ते सौगुनी, मादकता अधिकाय वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय ।। (बिहारी) कनक शब्द की एक बार आवृत्ति 1. सोना 2. धतूरा |
3. | श्लेष* | एक शब्द में एक से अधिक अर्थ जुड़े हों (जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ अलग-अलग हों) |
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून । पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून ।। (रहीम) पानी --> मोती ---> 1. चमक पानी --> मानुस ---> 2. प्रतिष्ठा पानी --> मोती ---> 3. जल |
4. | वक्रोक्ति* | प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति | एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ? |
(i) | श्लेषमूला वक्रोक्ति | श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति |
उसने कहा अपर कैसा ? वह उड़ गया सपर है।। (गुरुभक्त सिंह) यहाँ पूर्वार्द्ध में जहाँगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए 'अपर' (दूसरा) शब्द का प्रयोग किया है जबकि उत्तरार्द्ध में नूरजहाँ ने 'अपर' का 'बिना पर (पंख) वाला' अर्थ कर उत्तर दिया है। |
(ii) | काकुमूल | काकु (ध्वनि-विकार/आवाज परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति |
आप जाइए तो। = आप जाइए। आप जाइए तो ? → आप नहीं जाइए। |
5. | वीप्सा | मनोभावों को प्रकट करने के लिए शब्द दुहराना (वीप्सा-दुहराना) | छिः, छिः; राम, राम; चुप, चुप; देखो, देखो। |
अलंकार |
लक्षण/पहचान चिह्न |
उदाहरण/ टिप्पणी |
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1. | उपमा * |
जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है। भिन्न पदार्थों का सादृश्य प्रतिपादन उपमा के चार अंग- उपमेय/प्रस्तुत—जिसकी उपमा दी जाय उपमान/अप्रस्तुत—जिससे उपमा दी जाय समान धर्म (गुण)-उपमेय व उपमान में पाया जानेवाला उभयनिष्ठ गुण सादृश्य वाचक शब्द–उपमेय व उपमान की समता बताने वाला शब्द (सा, ऐसा, जैसा, ज्यों, सदृश, समान) |
हरिपद कोमल कमल से । हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल (उपमान) से कोमलता के कारण की गई । अत: उपमा अलंकार है । |
2. | रूपक * |
जहाँ उपमान और उपमेय के भेद को समाप्त कर उन्हें एक कर दिया जाय, वहाँ रूपक अलंकार होता है। |
उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग। विगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भृंग।। |
3. | उत्प्रेक्षा अलंकार* |
उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। |
उदाहरण:- सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात। मनहु नील मणि शैल पर, आतप परयो प्रभात।। |
4. | विभावना* |
जहां कारण के अभाव में भी कार्य हो रहा हो , वहां विभावना अलंकार है। |
उदाहरण:- बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना । कर बिनु कर्म करे विधि नाना ।। |
5. | अनुप्रास* |
जहां किसी वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है। |
उदाहरण:- चारु- चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल- थल में। |