व्याकरण मे रस क्या होता है ? रस के कितने भेद हैं? | Ras kise kahate hain? Ras ke kitane bhed hain?
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद' । काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस के चार अंग है-
(1) स्थायी भाव
(2) अनुभाव
(3) संचारी या (व्यभिचारी) भाव
(4) विभाव
1. स्थायी भाव
ह्रदय में मूलरूप से विध्यमान रहने वाले भावों को स्थायी भाव कहते है। ये चिरकाल तक रहनेवाले तथा रस रूप से सृजित परिणत होते है ।
स्थायी भावों की संख्या नौ है-
स्थायी भाव <===> रस
1. रति ===> श्रृंगार
2. उत्साह ===> वीर
3. वैराग्य ===> शांत
4. शोक ===> करुण
5. क्रोध ===> रौद्र
6. भय ===> भयानक
7. घृणा ===> वीभत्स
8. बिस्मय ===> अद्भुत
9. हास ===> हास्य
10. वत्सलता ===> वात्सल्य
11. भक्ति ===> भगवत रस
I. श्रृंगार रस
नायक-नायिका के प्रेम को देखकर श्रृंगार रस प्रकट होता है।
इसके दो भेद होते है।
1.संयोग श्रृंगार रस
2.वियोग श्रृंगार रस
संयोग श्रृंगार रस
जहाँ नायक व नायिका में परस्पर प्रेमपूर्ण क्रियाओं का वर्णन हो वहाँ संयोग श्रृंगार रस होता है।
उदाहरण-
एक पल मेरे प्रिय के दृग पलक, थे उठे ऊपर सहज निचे गिर
चपलता ने इसे विकंपित पुलक से दृढ किया मनो प्रणय सम्बन्ध था!
वियोग श्रृंगार रस
जहाँ नायक व नायिका का एक-दूसरे से दूर होने के कारण उनकी दुख दशा में वियोग, वियोग श्रृंगार रस कहलाता है।
उदाहरण-
पीर मेरी कर रही गमगीन मुझको
और उससे भी अधिक तेरे नयन का नीर, रानी
और उससे भी अधिक हर पाँव की जंजीर, रानी!
II. वीर रस
किसी कठिन कार्य को करने अथवा युद्ध के लिए ह्रदय में निहित ‘उत्साह’ स्थायीभाव के जाग्रत होने से जो स्थायी भाव उत्पन्न होता है उसे वीर रस कहा जाता है।
उदाहरण:-
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं।।
III. शांत रस
जहा संसार के प्रति निर्वेद रस रूप में परिणत होता है वहा शांत रस होता है।
उदाहरण:-
मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना।।
IV. करुण रस
इष्ट वस्तु की हानी अनिष्ट वस्तु का लाभ प्रिय का चिरवियोग, अर्थ हानी आदि से जहाँ शोकभाव की परिपुष्टि होती है वहाँ करुण रस होता है।
उदाहरण:- सोक बिकल सब रोवहिं रानी।
रूपु सीलु बलु तेजु बखानी।।
करहिं विलाप अनेक प्रकारा।।
परिहिं भूमि तल बारहिं बारा।।
V. रौद्र रस
जब किसी प्रिय वस्तु के अपमान होने के कारण ह्रदय में जो बदला लेने की भावना उत्पन्न होती है। वहाँ रोद्र रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण:-
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे।
VI. भयानक रस
भयप्रद वस्तु या घटना देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि से भय या संचार होता है यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाध्य हो जाता है वहाँ भयानक रस होता है।
उदाहरण:-
एक ओर अजग्रही लखी, एक ओर मृगराय!
विकल बटोही बिच ही, परयो मूर्छा खाय!!
VII. वीभत्स रस
अरुचिकर वस्तुएँ तथा दुर्गंधपूर्ण स्थान के विवरण में वीभत्स रस होता है।
उदाहरण:-
सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत।।
गीध जांघि को खोदि-खोदि कै मांस उपारत।
स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।
VIII. अद्भुत रस
आश्चर्जनक एवं विचित्र वास्तु के देखने व सुनने जब सब आश्चर्य का परिपोषण हो, तब वहाँ अद्भुत रस होता है।
उदाहरण:-
सती दिख कातुक नच जाता,
आगे राम रहित सिय भ्राता।।
IX. हास्य रस
जहाँ किसी काव्य को पड़ने, देखने व सुनने से ह्रदय में जो आनन्द की अनुभूति होती है वहाँ हास्य रस होता है।
उदाहरण:-
मैं महावीर हूँ, पापड़ को तोड़ सकता हूँ।
गुस्सा आ जाए, तो कागज को मोड सकता हूँ।।
X. वात्सल्य रस
जहाँ माँ-बाप का अपनी संतान के प्रति जो प्रेम होता है उसमें वात्सल्य रस होता है।
उदाहरण:-
बाल दशा मुख निरखि जसोदा पुनि पुनि नन्द बुलावति!
अंचरा तर तै ढंकी सुर के प्रभु को दूध पियावति!!
XI. भक्ति या भगवत रस
जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम उनके गुणों का गान करना तथा उनकी प्रशंसा करने में भक्ति रस की व्यंजना होती है।
उदाहरण:-
राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे।
घोर भव नीर-निधि, नाम निज नाव रे।।
2. अनुभाव
वाणी तथा अंग-संचालन आदि की जिन क्रियाओं से आलम्बन तथा उद्दीपन आदि के कारण आश्रय के हृदय में जाग्रत् भावों का साक्षात्कार होता है, वह व्यापार अनुभाव कहलाता है।
अनुभाव के चार भेद है-
(क) कायिक
(ख) मानसिक
(ग़) सात्विक
(घ) आहार्य।
3. संचारी या (व्यभिचारी) भाव
वे भाव जो पानी के बुलबुले की तरह आ के चले जाते हो लेकिन स्थायीभाव को पृष्ठ करते हो संचारी भाव कहलाते है।
इनकी संख्या 33 होती है।
असूया, मद, श्रम, आलस्य, दीनता, चिंता, मोह, स्मृति, धृति, व्रीड़ा, चापल्य, हर्ष, आवेग, जड़ता आदि ।
4. विभाव
जिसे देखकर किसी भाव का जागरण हो उसे आलम्बन विभाव कहेंगे। जिसके हृदय में यह भाव जागे उसे 'आश्रय' कहते हैं।
इसके तीन भेद होते है-
(i)आलम्बन विभाव - जिस कारण से स्थायी भाव जाग्रत हो उसे आलम्बन कहते है।
(ii) उद्दीपन विभाव - स्थायी भाव को जाग्रत रखने में सहायक कारण उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।
(iii) आश्रय विभाव - जिनके ह्रदय में भाव जागते है, उन्हें आश्रय कहते है।